मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
हिन्द यूनानी : -
- लगभग 200 ई.पू. से बार बार कई बाहरी शक्तियों के हमले के परिणाम स्वरुप सबसे पहले यूनानियों ने हिंदकुश पार किया , वे उत्तरी अफगान के पास बैक्ट्रिया से आए थे।
- आक्रमण का मुख्य कारण सेल्यूकस द्वारा स्थापित साम्राज्य की कमजोरी।
- चीन में महा दीवार बन जाने के कारन शक लोग चीन से बाहर भगा दिए गए अतः उन्होंने अपना रुख यूनान क्षेत्र की तरफ किया।
- शकों के बढ़ते दबाव से बैक्ट्रियाई यूनानी शासक अपने क्षेत्र में सत्ता बनाए रखने में असमर्थ रहे और वे भारत की तरफ बढे।
- अशोक के उत्तराधिकारी बाद में कमजोर हो गए थे और बाहरी आक्रमणों को रोकने में असफल रहे।
- बैक्ट्रियाई यूनानी, हिन्द यूनानी भी कहे जाते थे , ईसा पूर्व दूसरी सदी के आरंभ तक ये पश्चिमोत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्र पर काबिज हो गए।
- दो यूनानी राजवंशों ने एक ही समय में पश्चिमोत्तर भारत में शासन किया।
- सबसे अधिक विख्यात हिन्द - यूनानी शासक मिनांडर (165 - 145 ई.पू.) था , वह मिलिंद नाम से भी जाना जाता था , उसकी राजधानी पंजाब में शाकल (आधुनिक सियालकोट ) थी। उसने गंगा -यमुना दोआब पर आक्रमण किया था।
- मिनांडर को नागसेन ने बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। नागार्जुन , नागसेन का ही नामान्तर है। मिनांडर ने नागसेन से अनेक प्रश्न पूछे जिन्हें मिलिंदपन्हो नामक पुस्तक में सग्रहित किया गया है।
- हिन्द यूनानी , भारत के पहले शासक हुए जिनके द्वारा जारी किए गए सिक्कों के बारे में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सिक्के किन किन राजाओं के हैं।
- सबसे पहले भारत में हिन्द यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए , लेकिन इनकी मात्रा कुषाणों के शासन में जोर से बढ़ी।
- इन्होनें भारत के पश्चिमोत्तर प्रांतों में यूनान की कला का प्रसार किया जिसे हेलेनिस्टिक आर्ट कहा जाता है।
- भारत में गांधार कला , हिंदुस्तान और यूनानी कला का सम्मिश्रण है।
शक :-
- यूनानियों के बाद भारत में शक आए , इन्होनें यूनानियों से अधिक भाग पर कब्ज़ा किया था।
- शकों की 5 शाखाएं थी जो कि अफगानिस्तान , पंजाब (तक्षशिला), मथुरा और पश्चिम भारत और ऊपरी दक्कन में काबिज हुईं।
- शकों को भारत के शासकों और जनता का विरोध नहीं झेलना पड़ा।
- लेकिन लगभग 57- 58 ई.पू. में उज्जैन के तत्कालीन शासक विक्रमादित्य ने शकों को पराजित किया था और राज्य से बाहर भगा दिया था , विक्रम संवत 57 ई.पू. में शकों पर विजय से आरम्भ हुआ। तब से "विक्रमादित्य " नाम ऊँची प्रतिष्ठा और सर्वशक्तिमान सत्ता के लिए एक उपाधि हो गया।
- इस प्रथा से विक्रमादित्यों की संख्या 14 तक पहुँच गयी थी , गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय सबसे अधिक प्रसिद्ध विक्रमादित्य थे।
- जिन शकों नें पश्चिम में राज्य स्थापित किया था वे ही कुछ लम्बे अरसे तक शासन कर पाए , उन्होंने चांदी सिक्के चलवाए।
- सबसे अधिक विख्यात शक शासक रूद्र दमन प्रथम (130 - 150 ई.पू.) हुआ। उसका शासन सिंध , कोंकण , नर्मदा घाटी , मालवा , काठियावाड़ और गुजरात के बड़े भाग में था।
- रूद्र दमन ने काठियावाड़ के अर्धशुष्क क्षेत्र की मशहूर झील सुदर्शन का जीर्णोद्धार कराया था।
- रूद्र दमन ने सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लंबा अभिलेख जारी किया था।
पार्थियाई या पह्लव :-
- शकों के बाद पार्थियाई लोगों का आधिपत्य हुआ।
- इनका मूल स्थान ईरान में था जहाँ से वे भारत में आए।
- यूनानियों और शकों के विपरीत वे ईसा की पहली सदी में पश्चिमोत्तर भारत के छोटे से भाग पर ही सत्ता जमा सके।
- सबसे प्रसिद्ध पार्थियाई राजा हुआ गोंदोफनिर्श था।
कुषाण :-
- पार्थियाईओं के बाद कुषाण आए जो यूची और तोखारी भी कहलाते थे। कुषाण यूची कबीले के पांच भागों में से ही एक कुल के थे। वे उत्तर मध्य एशिया के खानाबदोश थे।
- इन्होनें पहले बैक्ट्रिया फिर उत्तरी अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया और शकों को भगा दिया।
- धीरे धीरे उनका साम्राज्य बैक्ट्रिया से गंगा मैदान , मध्य एशिया से के खुरासान से उत्तर प्रदेश के वाराणसी तक फ़ैल गया था।
- एक के बाद एक कुषाणों के दो राजवंश आए। पहले राजवंश की स्थापना कैडफाइसिस नामक सरदारों के घराने ने की जिनका शासन 50 ई. से 28 वर्षों तक चला। इसमें दो राजा हुए पहले कैडफाइसिस प्रथम जिसने हिंदकुश के दक्षिण में सिक्के चलवाए , उसने तांबे के सिक्के भी चलवाए। दूसरे राजा हुए केडफाइसिस द्वितीय जिसने कि बड़ी मात्रा में सोने के सिक्के चलवाए और अपना राज्य सिंधु नदी के पूरब तक फैलाया।
- कैडफाइसिस राजवंश के बाद कनिष्क राजवंश आया।
- इनके अभिलेख पश्चिमोत्तर भारत , सिंधु , मथुरा , श्रावस्ती ,कौशाम्बी , वाराणसी तक पाए गए हैं।
- मथुरा में प्राप्त कुषाणों के सिक्कों , अभिलेख , संरचना से प्रकट होता है की मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी थी। पहली राजधानी पेशावर में थी। वहां कनिष्क ने एक विशाल स्तूप और एक मठ का निर्माण कराया था।
- कनिष्क सर्वाधिक विख्यात कुषाण शासक था। वह भारत के बाहर एक बार चीनियों से हार गया था लेकिन इतिहास में वह दो कारणों से प्रसिद्ध हुआ -
- उसने 78 ईसवी में एक संवत चलाया जिसे "शक संवत" कहा जाता है, और भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
- उसने बौद्ध धर्म का खुले दिल से संपोषण और संरक्षण किया , उसने कश्मीर में बौद्धों का सम्मलेन आयोजित किया जिसमें बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय को अंतिम रूप दिया गया।
- कनिष्क के वंशज भारत पर लगभग 230 ईस्वी तक राज करते रहे।
- अरल सागर के दक्षिण टोपरक कला स्थान पर विशाल कुषाण प्रासाद खुदाई में मिला जो की संभवतः तीसरी चौथी सदी का है। इसमें प्रशासनिक अभिलेखागार था जहां अरामाइक लिपि और ख्वारिज्म भाषा में लिखे हुए लेख , अभिलेख मिले हैं।
मध्य एशिया से संपर्कों के प्रभाव
भवन और मृदभांड :-
- शक कुषाण काल के भवनों में पकी ईंटों का प्रयोग फर्श में हुआ है जबकि खपरों का प्रयोग फर्श और छत दोनों में किया गया है।
- इस काल की एक विशेषता ईंटो के कुओं का निर्माण भी है।
- कुषाण काल का अपना खास मृदभांड ,सादा और पालिशदार लाल बर्तन है। जबकि असाधारण बर्तन फुहारों और टोटियों वाले पात्र हैं।
- मध्य एशियाई लोगों के आने से भारत को मध्य एशिया से के अल्ताई पहाड़ों से भारी मात्रा में सोना प्राप्त हुआ।
- कुषाणों ने रेशम के उस मार्ग पर नियंत्रण कर लिया जो चीन से चलकर कुषाण साम्राज्य में शामिल मध्य एशिया और अफगानिस्तान से गुजरते हुए ईरान जाता था , यह रेशम मार्ग कुषाणों का बड़ा आय श्रोत था वे इस रास्ते के व्यापारियों से चुंगी उगाही करते थे।
- कुषाण राजाओं ने महाराजाधिराज की गौरवपूर्ण उपाधि धारण की जिसका आशय था कि वे अनेक छोटे राजाओं के राजा थे और उनसे कर एकत्रित करते थे।
- अशोक देवों का प्रिय कहा जाता था , पर कुषाण राजा देवपुत्र कहलाते थे।
- कुषाणों ने राज्य शासन में क्षत्रप प्रणाली चलाई। समाज अनेक क्षत्रापियों (उपराज्यों ) में बंटा होता था और प्रत्येक क्षत्रपी को एक -एक क्षत्रप के शासन में छोड़ दिया।
- यूनानियों ने सेना शासन की परिपाटी भी चलाई , वे इसके लिए शासक सेनानी नियुक्त करते थे जो स्ट्रेटेगोस कहे जाते थे।
- कई विदेशी यूनानी शासक वैष्णव संप्रदाय में आ गए और विष्णु के उपासक बन गए।
- यूनानी राजदूत हेलियोडोरस ने मध्य प्रदेश के विदिशा में ईसा पूर्व लगभग दूसरी सदी में वासुदेव आराधना हेतु एक स्तंभ खड़ा किया था।
- कुछ अन्य यूनानी शासकों ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था।
- कुषाण शासक बुद्ध और शिव दोनों के उपासक थे अतः कुषाण मुद्राओं पर दोनों देवताओं के चित्र पाए जाते हैं।
- कुछ कुषाण शासक वैष्णव भी हुए जैसे वासुदेव , इनके नाम का अर्थ ही भगवान विष्णु है।
बौद्ध महायान संप्रदाय का उद्भव
मध्य एशिया से भारी संख्या में लगातार विदेशियों के आगमन का असर यह हुआ कि नगरों में व्यापारियों और शिल्पियों का जमाव बढ़ता गया। कालांतर में बौद्ध भिक्षुओं में नकद दान लेने का लोभ आ गया और वे विलासी होते गए। वे धीरे धीरे सोना चांदी छूने लगे , मांस खाने लगे , नियमों में ढिलाई आ गयी , कुछ तो गृहस्थ जीवन में भी लौट गए। बौद्ध धर्म का यह नया रूप महायान कहलाया। बौद्ध धर्म में धीरे धीरे बुद्ध की मूर्ति पूजा भी होने लगी। महायान के उदय होने पर इसके विपरीत बौद्ध धर्म का पुराना शुद्ध रूप ही हीनयान कहा गया।
कनिष्क महायान का संरक्षक था। उसने कश्मीर में परिषद् का आयोजन किया जिसमे तीन लाख शब्दों में एक ग्रन्थ की रचना की जिसमें तीन त्रिपिटकों या बौद्ध साहित्य की पूरी व्याख्या की गई है।
कला की गांधार और मथुरा शैली :-
- कुषाण शासन काल में कला की नई शैलियां , गांधार और मथुरा शैली का उद्भव हुआ।
- मथुरा में बुद्ध की विलक्षण प्रतिमाएं बनीं , परन्तु इस जगह की ख्याति कनिष्क की शिरोहीन खड़ी मूर्ति को लेकर है जिसके निचले भाग में कनिष्क का नाम खुदा है।
- संप्रति मथुरा संग्रहालय में कुषाण कालीन मूर्तियों का भारत भर में सबसे अधिक संग्रह है।
- इसी काल में महाराष्ट्र में चट्टानों को काटकर सुंदर बौद्ध गुफाएं बनाई गईं थीं।
- इस काल में आंध्र प्रदेश का नागार्जुन कोंड और अमरावती बौद्ध कला के महान केंद्र हो गए।
- बौद्ध धर्म से संबंधित सबसे पुराने पट्ट चित्र साँची और भरहुत में पाए जाते हैं।
- काव्य शैली का पहला नमूना रूद्र दमन का काठियावाड़ में जूनागढ़ अभिलेख है। इसके बाद से अभिलेख परिष्कृत संस्कृत भाषा में लिखे जाने लगे
- अश्वघोष ने बुद्ध की जीवनी बुद्ध चरित नाम से लिखी थी, उसने सौन्दरनन्द नामक काव्य भी लिखा जो की संस्कृत का उत्कृष्ट काव्य है।
- महायान शाखा बनाने के बाद कई बौद्ध अवदानों की रचना हुई जिनका उद्देश्य लोगों को महायान के उपदेशों कराना था। महावस्तु , दिव्यावदान प्रमुख अवदान थे।
- यूनानियों ने परदे का चलन प्रारंभ किया जिसका योगदान नाट्यकला में प्रमुख रूप से था। यूनानियों की खोज के कारण परदे को यवनिका कहा गया।
- धर्म से इतर साहित्य का सबसे अच्छा उदाहरण वात्स्यायन का कामसूत्र था।
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