किसी स्थान की भू आकृति , उसकी संरचना , प्रक्रिया और विकास का परिणाम होती है , पर्वतों का निर्माण भी इन्हीं प्रक्रियाओं और विकास का परिणाम होता है। पर्वत कई तरह के होते हैं जिनका निर्माण कई अलग अलग कारणों से होता है।
वलित पर्वत :- ये दो प्लेटों के पारस्परिक टक्कर के फलस्वरूप निर्मित होते हैं। ये विश्व के सबसे ऊँचे पर्वत हैं। जैसे - हिमालय , रॉकी , एण्डीज़ , एटलस , आल्पस।
अवरोधी पर्वत :-इनका निर्माण पृथ्वी के किसी भाग के निचे धंस जाने या ऊपर उठ जाने के कारण होता है , जैसे कि जर्मनी का ब्लैक फारेस्ट , पाकिस्तान का साल्ट रेंज।
अवशिष्ट पर्वत :- ये पृथ्वी के सबसे पुराने पर्वत हैं जिनका निर्माण ज्वालामुखी के लावा से हुआ है। ये पर्वत अपरदन के कारण घिस कर छोटे रह गए हैं। जैसे कि - विंध्य , सतपुड़ा , अरावली आदि।
संग्रहित पर्वत :-ये ज्वालामुखी के लावा , कंकड़ ,पत्थर के एकत्रित होने से बने हैं। जैसे- USA में सास्ता , जापान में फ्युजियामा , चिली में एकांकागुआ , तंजानिया में किलिमंजारो।
भारत के भू भाग में भी पर्वतों का भाग अधिक है। भारत के उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला में हिमालय पर्वत और उत्तरी पूर्वी पहाड़ियां शामिल है , पश्चिम से दक्षिण तक सतपुड़ा , अरावली,विंध्य , नीलगिरि, डोडाबेट्टा , इलायची आदि पहाड़िया फैली हैं।
उत्तर तथा उत्तरी पूर्वी पर्वतमाला :-
- इसमें हिमालय पर्वत तथा उत्तरी पूर्वी पहाड़ियां शामिल हैं। हिमालय में कई समानांतर पर्वत श्रृंखलाएँ हैं।
- वृहत हिमालय या महान हिमालय प्राचीनतम श्रेणी है ,तत्पश्चात लघु हिमालय जबकि शिवालिक नवीनतम श्रेणी है।
- महान हिमालय को आंतरिक हिमालय /वृहत्तर हिमालय और हिमाद्रि भी कहा जाता है।
- कश्मीर घाटी , महान हिमालय और महाभारत के मध्य में हैं।
- ट्रांस हिमालय तिब्बत क्षेत्र है।
- हिमालय का विस्तार नंगा पर्वत से नामचा बरवा(अरुणाचल) तक है।
- विश्व के सर्वोच्च 100 चोटियों में से 70 हिमालय से हैं।
- हिमालय के गिरिपाद से पश्चिम में सिंध व पूर्व में तीस्ता के मध्य के समतल क्षेत्र को भाबर कहा जाता है। इसकी चौड़ाई पूर्व में कम एवं पश्चिम में अधिक है। यह कंकड़ों की जगह है जहां नदियां लुप्त हो जाती हैं।
- भाबर के दक्षिण में 15-30 किमी दलदली क्षेत्र है जिसे तराई खा जाता है।
- लघु या मध्य हिमालय , शिवालिक और महान हिमालय के मध्य में है।
- लघु हिमालय 80 से 100 किमी चौड़ा और औसतन 3050 किमी ऊँचा है।
- लघु हिमालय को हिमालय या हिमाचल कहा जाता है।
- इसे जम्मू कश्मीर में पीरपंजाल , हिमाचलप्रदेश में धौलाधार , उत्तराखंड में नागा टिब्बा , नेपाल में महाभारत , अरुणाचल में पटकोई कहा जाता है।
- लघु हिमालय के निचले ढलानों पर घास के मैदान हैं जिन्हें कश्मीर में मर्ग कहा जाता है एवं उत्तराखंड में बुग्याल या पयार कहा जाता है।
- शिमला , मंसूरी , नैनीताल , काठमांडू व दार्जिलिंग लघु हिमालय क्षेत्र में ही हैं।
- बाह्य हिमालय को शिवालिक नाम से भी जाना जाता है।
- इसका विस्तार पोठोहार (P.O.K.) से कोसी नदी (बिहार ) तक है।
- इसके पश्चिमी भाग पर दून और पूर्वी भाग पर दुआर पाए जाते हैं। `
- हिमालय का पर्वत पदीय क्षेत्र - शिवालिक श्रेणी का दक्षिण भाग है।
- शिवालिक श्रेणी का निर्माण प्लायोसिन या सेनोजोइक युग में हुआ था
- शिवालिक की ऊंचाई -900से 1200 मीटर एवं लम्बाई 2400 किमी है
- हिमालय के उत्तर में 3 पर्वत श्रेणियां हैं -कराकोरम , लद्दाख , जास्कर। इन्हें पामीर के पठार का हिस्सा माना जाता है।
- हिमालय का विस्तार पूर्वोत्तर भारत में नागाहिल (नागालैंड ) , लुसाई (मिजोरम ) तथा अराकान योमा (भारत - म्यांमार सीमा ) हिमालय का दक्षिणी विस्तार है। मेघालय में गारो , खासी , जयंतिया भी हिमालय का ही विस्तार है।
- दक्षिण से उत्तर क्रम - धौलाधार ,जास्कर , लद्दाख , काराकोरम
- पूर्व से पश्चिम - कंचनजंगा , एवरेस्ट ,अन्नपूर्णा ,धौलाधार
- कंचनजंगा में तीस्ता और पश्चिम में तामूर है।
- अन्नपूर्णा उत्तर मध्य नेपाल में है।
- पूर्वी हिमालय की तुलना में ट्री लाइन का ऊंचाई मान पश्चिम हिमालय में कम होता है।
- पटकोई श्रेणी हिमालय में है ,यह असम , मणिपुर, मेघालय,मिजोरम , नागालैंड से संलग्न है।
- त्रिपुआ , मिज़ो पहाड़ी से संलग्न है न कि पटकोई से।
- पीरपंजाल श्रेणी हिमाचल एवं जम्मू कश्मीर में दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम तक फैली है।
- अक्साई चिन :- भारत , चीन व पाकिस्तान के सीमाओं का संधि स्थल है। यह लद्दाख पठार पर है। 1962 में चीन ने इस पर कब्जा किया तब से विवाद चल रहा है।
- ग्रेट हिमालय की ऊंचाई 8848 मीटर है।
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