छठी सदी ईसा पूर्व में सोलह महाजनपद में से एक मगध महाजनपद का उत्कर्ष साम्राज्य रूप में हुआ। इसे भारत का प्रथम साम्राज्य होने का गौरव प्राप्त है।
हर्यक वंश के शासक बिंबिसार गिरिव्रज (राजगृह ) को अपनी राजधानी बनाकर मगध साम्राज्य स्थापना की। बिम्बिसार हर्यक वंश का शक्तिशाली शासक था। बिम्बिसार के शासन काल में मगध ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। वह बुद्ध का समकालीन था। उसके द्वारा शुरू की गई विजय और विस्तार की नीति अशोक के कलिंग विजय के साथ ही समाप्त हुई। बिम्बिसार ने अंग देश पर अधिकार कर लिया और इसका शासन अपने पुत्र अजातशत्रु सौंप दिया।
बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंधो से भी अपनी स्थिति मजबूत की। उसने तीन विवाह किये , उसकी प्रथम पत्नी कोसल राज पुत्री और प्रसेनजित की बहन थी। इससे उसे काशी ग्राम मिल गया जहाँ से उसे एक लाख होती थी। उसकी दूसरी पत्नी वैशाली के लिच्छवि राजकुमारी चेल्लणा थीं जिसने अजातशत्रु को जन्म दिया। तीसरी पत्नी पंजाब के मद्र कुल के प्रधान की पुत्री थी। इन विवाहों से साम्राज्य को पश्चिम और उत्तर दिशा में विस्तार करने में सहायता मिली।
मगध की असली शत्रुता अवन्ति से थी , इसके राजा चण्ड प्रद्योत महासेन की बिम्बिसार से लड़ाई हुई थी किन्तु बाद में दोनों मित्र बन गए। बाद में जब चण्डप्रद्योत को पीलिया हुआ तो बिम्बिसार ने अपने वैद्य जीवक को उज्जैन भेजा था।
अजातशत्रु (492 -460 ई.पू. ) - बौद्ध ग्रंथो के अनुसार बिम्बिसार ने लगभग 544 से 492 ई.पू. तक बावन साल शासन किया , उसके बाद उसका पुत्र अजातशत्रु (492 -460 ई.पू.) सिंहासन पर बैठा। अजातशत्रु ने अपने पिता की हत्या करके सिंहासन पर कब्ज़ा किया था। अजातशत्रु ने कोसल को हराकर कोसल नरेश की पुत्री से शादी कर ली और कोसल को मगध में मिला लिया। अजातशत्रु की माता लिच्छवि कुल की थी फिर भी उसने वैशाली पर हमला किया और नष्ट कर डाला , वैशाली पर विजय प्राप्त करने में उसे १६ साल लगे थे।
- प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगीर के सप्तपर्णी गुफा में अजातशत्रु के समय में ही हुआ था।
शिशुनाग वंश - हर्यक वंश के बाद मगध पर शिशुनाग वंश का शासन स्थापित हुआ। शिशुनाग नाम के अमात्य ने नागदशक को गद्दी से पदच्युत कर के खुद गद्दी पर बैठा और शिशुनाग वंश की स्थापना की। शिशुनाग(412 -394ई.पू.) ने अवन्ति को मगध में मिला लिया व वज्जियों को नियंत्रित करने के लिए वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
- शिशुनाग के बाद कालाशोक(394 -366ई.पू.) जिसका उपनाम काकवर्ण था ने शासन किया। इसने अपनी राजधानी पुनः पाटलिपुत्र में स्थानांतरित क्र ली। कालाशोक के समय में ही वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति आयोजन हुआ। कालाशोक की हत्या राजधानी के समीप घूमते हुए , किसी व्यक्ति ने छुरा भोंक कर की थी।
- इस वंश का संस्थापक महानन्दिन थे।
- शिशुनागवंश के बाद मगध का राज्य नंद वंश के हाथो में आ गया। महानन्दिन ने इस नन्द वंश की स्थापना की परन्तु उसका वध एक शूद्र दासी पुत्र महापद्मनंद ने कर दी थी।
- नन्द वंश में कुल 9 राजा हुए और इसी कारन उन्हें नवनंद कहा जाता है। महाबोधि वंश में उनके नाम इस प्रकार मिलते हैं - १- उग्रसेन (महानन्दिन ) २-पण्डुक ३-पंडुगति ४-भूतपाल ५-राष्ट्रपाल ६-गोविषाणक ७-दशशिधक ८-कैवर्त ९-घनानंद
- इसमें उग्रसेन को ही पुराणों में महापद्म कहा गया है शेष 8 उसी के पुत्र थे।
- महापद्म नंद - यह पूरे मगध साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली राजा शासक था। इसने प्रथम बार कलिंग विजय की तथा वहाँ नहर भी खुदवाई जिसका उल्लेख कलिंग शासक खारवेल ने अपने हाथी गुम्फा अभिलेख में किया है। इसी अभिलेख से पता चलता है की महापद्म नन्द कलिंग से जैन प्रतिमा उठा लाया था। पुराणों में इसे एकराट कहा गया है
- नंद वंश का अंतिम शासक : घनानंद - यह नंद वंश का अंतिम सम्राट था। अत्यधिक कररोपण की वजह से जनता इससे असंतुष्ट थी। इसका लाभ चन्द्रगुप्त ने उठाया और चाणक्य की मदद से इसे मार कर मौर्य वंश की स्थापना।
- इसी शासक के समय में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था।
- नन्द शासक जैन मत के पोषक थे। घनानंद के जैन अमात्य शकटाल तथा स्थूलभद्र थे।
- मगध ही पहला राज्य था जिसने अपने पड़ोसियों के विरूद्ध युद्ध में हाथियों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया
- रत्निन प्रशासनिक अधिकारी थे , ये राजा के प्रति उत्तरदायी थे।
- कम्बोज ,कौशाम्बी ,कोसल ,वाराणसी व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र थे।
No comments:
Post a Comment